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Posted - Jun 4, 2024

कमल की कशमकश: भाजपा को आत्ममंथन की सलाह दे रहे चुनाव नतीजे; हिंदुत्व पर भारी पड़ी जाति और मुस्लिमों की लामबंदी

जनमन का यही जनादेश है...लगातार तीसरी बार मोदी सरकार बन रही है...मगर विपक्षी गठबंधन ने पीएम मोदी की अपराजेय छवि को गंभीर चुनौती दी है। कांग्रेस की सीटों में बढ़ोतरी और बेहतर प्रदर्शन ने राहुल गांधी की छवि बदली, तो भाजपा के समीकरण भी असंतुलित हुए। सीटें घटीं। यहां तक कि अयोध्या जैसी सीट पर हार ने सवाल  खड़े किए हालांकि दक्षिण भारत में विस्तार से कुछ मरहम जरूर लगा।

एनडीए का आंकड़ा भले ही सरकार बनाने लायक बहुमत से आगे निकल गया हो, भाजपा भले ही सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी हो, लेकिन आंकडे़ बता रहे हैं कि जातीय गोलबंदी और मुस्लिम लामबंदी हिंदुत्व पर भारी पड़ी। मोदी की तीसरी बार सरकार बनने से संविधान और आरक्षण पर खतरे का विपक्ष का शोर भाजपा के लाभार्थी मतदाताओं के समूहों तथा सबका साथ-सबका विकास-सबका विश्वास और सबका प्रयास के नारे पर भारी पड़ा। अयोध्या में राममंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा के बावजूद वहां भाजपा की हार इसका सबसे बड़ा उदाहरण है।हिंदी पट्टी में उत्तर प्रदेश सहित, राजस्थान, हरियाणा के अलावा महाराष्ट्र व पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में आरक्षण बचाने के लिए पिछड़ों और दलितों की जातीय गोलबंदी के साथ मुस्लिमों ने लामबंद होकर भाजपा को अपने दम पर बहुमत के आंकड़े से ही दूर नहीं किया, इंडिया गठबंधन के पैर जमाने की कोशिश को भी आसान कर दिया। नतीजों का मुख्य संकेत यही है। पर, गणित बिगड़ने का कारण सिर्फ यही नहीं है। भाजपा के अति आत्मविश्वास और वर्तमान सांसदों को लेकर स्थानीय स्तर पर अलोकप्रियता, विपक्ष की तरफ से महंगाई, बेरोजगारी और किसानों के साथ नाइंसाफी जैसे आरोपाें ने भी भाजपा के समीकरणों को कमजोर किया।सबसे बड़े दल के रूप में उभरने के बावजूद, भाजपा के लिए 370 और एनडीए के लिए 400 पार के भरोसे से लबरेज लक्ष्य के चौंकाने वाले फलितार्थ निश्चय ही भाजपा को आत्ममंथन की सलाह दे रहे हैं। मध्यप्रदेश, बिहार और दिल्ली में भाजपा के नतीजों के भी कुछ संकेत हैं।