Posted Dec 7, 2024
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Posted Dec 6, 2024
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आपने कभी किसी को एक बार में दो शं बजाते हुए देखा है? अगर नहीं तो मिलिए लखनऊ के 77 साल के महेश से जो साल 1990 से एक बार में दो शंख बजा रहे हैं. दो शंख बजाने की ही वजह से इन्हें पूरे उत्तर प्रदेश में लोग शंखनादीके नाम से जानते हैं. अब यह टाइटल वो अपने नाम के आगे लगाते भी हैं. इनका पूरा नाम महेश शंखनादी है. यही नहीं महेश शंखनादी ने शंखों पर रिसर्च भी की है. जिसे वह जल्द ही छपवाने भी वाले हैं.महेश शंखनादी ने बताया कि उनके पास चार प्रमुख शंख हैंजो बेहद प्राचीन हैं. पहला शंख उनके पास जगन्नाथ पुरी का है, दूसरा केदारनाथ का है तीसरा द्वारकाधीश का है, इसका रंग भी हल्का सांवला होता है. वहीं चौथा शंख इनके पास रामेश्वरम का है. चारों ही 1990 के हैं और अभी भी इनकी आवाज बेहद तेज है. वह कहते हैं कि शंख में भी नर और मादा होती है जो शंख बहुत तेज बजता है वह नर है. जो मधुर बजता है जिसकी आवाज धीमी होती है वह मादा शंख है. जो लोग लगातार शंख को बजाते हैं वे दोनों में अंतर समझ जाएंगे.रिसर्च की प्रमुख बातें महेश शंखनादी बताते हैं कि बहुत कम लोग जानते हैं कि शास्त्रों के मुताबिक शंख भगवान विष्णु के साले हैं क्योंकि समुद्र मंथन से मां लक्ष्मी भी निकली थीं और शंख भी और लक्ष्मी जी का विवाह विष्णु भगवान से हुआ. ऐसे में शास्त्रों के मुताबिक शंख विष्णु भगवान के साले हैं. वहीं साइंटिफिक रिसर्च की बात करें तो वह कहते हैं कि शंख बजाने से किसी को टीबी नहीं हो सकती क्योंकि उसके फेफड़े इतने मजबूत रहेंगे कि फेफड़ों से जुड़ी कोई भी बीमारी शंख बजाने वाले को कभी नहीं हो सकती है.हार्ट को रखता है मजबूत इसके अलावा शंख बजाने वालों का दिल भी मजबूत होता है. पूरा शरीर ऊर्जावान होता है. चेहरे पर तेज बना रहता है. यही नहीं शंख बजाने के सकारात्मक ऊर्जा चारों ओर रहती है. शंख बजाने वाले की वाणी भी बेहद तेज हो जाती है. उन्होंने बताया कि उन्होंने 106 रिसर्च के प्रमुख बिंदु लिखे हैं. जल्दी यह रिसर्च पब्लिश भी होगी.ऐसे बने शंखनादी 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में विवादित ढांचा गिरा उस वक्त महेश शंखनादी वहीं पर मौजूद थे. इनका पूरा परिवार कार सेवक रहा है.